Wednesday, December 29, 2010

जाने कितनी रात


जाने कितनी रात के बाद सुबह नहीं आयी
जाने कितने समय बाद तुम्हारी याद नहीं आयी
अब खो गया हूं अपने को याद करने में ही
जाने कितने दिन बाद आइने पर तुम्हारी तसवीर नहीं आई

जाने कई साल पहले...


जाने कई साल पहले कुछ सपने बुने थे
जिंदगी के ताना - बाना में उलझ गया
जब फुर्सत मिली एक पल
अतीत याद करने के लिए
तो वह सपना...सपना ही रह गया.

Sunday, November 28, 2010

महत्वपूर्ण खबर


अकबर बीरबल से ....बीरबल...महत्वपूर्ण खबर की परिभाषा बताओ...
बीरबल....किसी संस्थान में काम करने वाले रिपोर्टर से जो खबर छूट जाए....वह खबर दूसरे अखबार में छप जाए....भले ही वह खबर चिरकुट ही क्यों ना हो.... जहांपनाह वही महत्वपूर्ण खबर है....

काम का प्रेसर


अकबर बीरबल से ....बीरबल ये प्रेसर क्या होता....कहां दिखता है....बीरबल.....जब सब एडिटर पूरा पेज बना कर तैयार कर ले....उसके बाद सिटी इंचार्ज 5 डीसी खबर उस पेज पर दे दे...और पेज छूटने का समय हो जाए...कसी भी हालत में उस खबर को लगाना हो ....तो जहांपनाह उसे ही प्रेसर कहते हैं....यह न्यूज चैनल और अखबार के दफ्तर में देखने को मिलता है.....

Thursday, July 29, 2010

शिबू सोरने उग्रवादी है !

उड़ीसा में बारहवीं क्लास के एक किताब में लिखा गया है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा एक उग्रवादी संगठन है. यह संगठन देश के विकास में बाधक है. उड़ीया भाषा में लिखा गया यह मजमून पढ़ कर झामुमो सुप्रीमो शबू सोरेन के सकते में आना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. झामुमो से समर्थन लेने वाली बीजू जनता दल वाली सरकार के समय यह किताब में छपना आश्चर्य की बात है. वर्ष 2008 में जब बीजू जनता दल और भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी. इसी वर्ष कंधमाल में दंगा हो जाने के कारण भाजपा ने बीजद से अपना समर्थन वापस ले लिया था. उस समय झामुमो ने बीजद को समर्थन दिया था. हलांकि बारहवीं की किताब का प्रकाशन वर्ष 2006 को हुआ था.
यह मामला मीडिया में आने के बाद झामुमो सुप्रीमो शबू सोरेन ने उड़ीसा के राज्यपाल को एक पत्र के माध्यम से कहा कि इस संबंध में तुरंत कार्रवाई की जाए.

Monday, June 21, 2010

अंधविश्वास - डायन के संदेह में दंपत्ति का गला काटा

उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले के रायरंगपुर अनुमंडल के पास नंगड़थिला गांव में डायन के संदेह में एक दंपत्ति की गला काट कर हत्या कर दी गयी. हत्यारा अब पुलस की गिरफ्त में है.
रायरंगपुर अनुमंडल में नंगड़थिला गांव है. उस गांव में कामो हांसदा अपने परिवार के साथ रहता था. कामो हांसदा का पिता कई सालों से बीमार था. कामो ने अपने पिता का इलाज कई जगह कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उसे शक था कि उसके पड़ोस में रहने वाले लक्ष्मण बेसरा तथा उसकी पत्नी डुमनी बेसरा ने उसके पिता पर जादू टोना कर दिया है. कामो कई दिनों से उस दंपत्ति को जान से मारने के फिराक में था. 20 जून की रात को कामो हांसदा लक्ष्मण के घर गया. वह लक्ष्मण को बाहर बुलाया तथा पास में ही स्थित झाड़ी में ले गया. वहां कामों हांसदा ने कुल्हाड़ी से लक्ष्मण बेसरा का सर काट कर धड़ से अगल कर दिया. उसके बाद कामो हांसदा लक्ष्मण के घर गया और उसी कुल्हाड़ी से उसकी पत्नी डुमरी बेसरा का सर काट दिया. इस नृशंस हत्या के बाद कामो हांसदा फरार हो गया. सुबह मृतक दंपत्ति का पुत्र सुंदर मोहन बेसरा ने अपने परिजन की मौत की खबर गांव वालों को दी. गांव वालों ने इस घटना की सूचना तुरंत पुलिस को दी. पुलिस घटनास्थल से मृतकों का शव अपने कब्जे में लिया तथा पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस के अथक प्रयास के बाद कामो हांसदा को पकड़ लिया गया. पुलिस ने उस पर मामला दर्ज कर उसे अदालत भेज दिया.

Friday, June 11, 2010

पाप धोने में जान गयी....

उड़ीसा के मयूरभंज जिले में एक पवित्र तालाब है. लोगों की मान्यता है कि उस तालाब में नहाने से सभी पाप धुल जाते हैं. यह पुराणों में दर्ज है कि इस तालाब में पांडव के भाई भीम स्नान किया करते थे. इसलिए इसे भीमकुंड कहा जाता है. इस तालाब की गहराई लगभग 100 फीट है.
तालाब में अपने पाप दोने के लिए एक महिला, तीन बच्चे समेत पांच लोगों की मौत हो गयी. पाप धोने गए पर्यटक की तालाब में डूब कर हुई मौत से उक्त पर्यटन स्थल पर कई सवाल खड़े होते हैं. उक्त तालाब में नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं. तालाब में नहाने गए लोगों के पाप इतने ज्यादा थे कि तालाब उनके पाप को धो न सकी.
बात सिर्फ उड़ीसा के भीमकुंड की नहीं है. भारत में ऐसे कई धार्मिक स्थल है जहां ऐसी दुघर्टना अक्सर होती रहती है. कहीं मंदिर में मची भगदड़ से लोग मरते हैं तो कहीं मंदिर तक पहुंचने में लोग मारे जाते हैं. आस्था और अंधिवश्वास दो अलग चीज है. किसी चीज पर आस्था गलत नहीं है, लेकिन उस आस्था का अंधिविश्वास में तब्दील हो जाना ही गलत है. जो लोग पाप दोने गए थे क्या उन्हें पता था कि वे अपने जीवनकाल में कितने पाप किए थे. इसका कोई पैमाना नहीं है और ना ही इन बेतुकी बातों का कोई मतलब है.

Tuesday, February 9, 2010

माओवादी बन गए हैं माफिया…


माओ-त्से-तुंग ने चीन में मार्क्सवादी, लेलिनवादी विचारधारा को सैनिक रणनीति में जोड़कर जिस सिद्धांत को जन्म दिया उसे माओवादी कहा जाता है। भारत में माओवादी इसी विचारधारा पर चल रहें हैं। वे सरकार के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए हैं। झारखण्ड में माओवादी माफियावादी बन गए हैं। सरकार से जारी जल जंगल जमीन की जंग के आड़ में आम नागरिक का शोषण कर रहे हैं। हाल में ही नक्सली ने लेवी का फरमान जारी किया है। फरमान के मुताबिक बड़े- छोटे सरकारी कर्मचारियों को 20 प्रतिशत वार्षिक लेवी देना होगा।

माओ साम्यवादी थे। वे वर्ग विहीन समानता लाना चाहते थे। आज नक्सली माओवादी विचारधारा अपना कर आम नागरिक की हत्या कर कौन सी समानता लाना चाहते हैं। आम नागरिकों का शोषण कर कौन सी वर्ग समानता लाना चाहते हैं। नक्सलियों की लड़ाई सरकार के खिलाफ है तो वे आम नागरिको को परेशान क्यों कर रहे हैं। आए दिन नक्सली राज्य बंद का एलान कर देते हैं। वे शायद सरकार पर दबाव बनाने के लिए बंद करवाते हैं। लेकिन इसका खामियाजा तो आम नागिरक ही भुगतना पड़ता है। झारखण्ड गठन के लगभग 10 साल होने के हैं लेकिन इन 10 सालों में लगभग दो साल झारखण्ड बंद रहा है। जिससे राज्य विकास से दो साल पीछे चला गया है।

नक्सली हथियार के बल पर क्रांति कर रहे हैं वे क्रांति नहीं आतंक फैला रहे हैं। आजादी से पहले सरदार भगत सिंह ने भी हथियार के बल पर ही देश को आजाद कराने के लिए क्रांति किया था। शहीद भगत सिंह उस समय भारतीयों के नजर में क्रांतिकारी थे और अंग्रेंजो के नजर में आतंकवादी। आज हम भारतवर्ष में रह रहे हैं। कई कुर्बानियों के बाद हमने आजादी पाई है। आज हमारा अपना संविधान है और उसके मुताबिक देश चल रहा है। आज नक्सली जो कर रहे हैं वो क्रांति नहीं आतंक है। जल जंगल जमीन की लड़ाई के बहाने नक्सली सिर्फ आतंक फैला रहे हैं।

हाल में ही झारखण्ड में सरकार द्वारा चलाए जा रहे ग्रीन हंट का नक्सलियों ने तीन दिन बंद का अह्वान कर विरोध किया। नक्सलियों द्वारा ये बंद ना तो पहला है और ना ही आखिरी। सरकार नक्सलियों पर लगाम कसने के लिए अभियान चलाते रहेंगे और नक्सली इसका विरोध राज्य बंद कर, ट्रेन की पटरी उड़ा कर या विस्फोट कर करते रहेंगे। इस लड़ाई में फतह किसी की भी हो लेकिन मारे जा रहे हैं गरीब मजदूर जो अपनी जीविका के लिए रोज मजदूरी करते हैं।

फोटो - गूगल

Wednesday, January 27, 2010

क्या आप जानते हैं इस देश में कितने बाबा हैं ?




क्या आप जानते हैं इस देश में कितने बाबा हैं ? इस सवाल के बाद आपके मस्तिष्क में सांई बाबा, बाबा रामदेव की तस्वीर उभरनी जायज है। लेकिन मैं उक्त बाबाओं के बारें में बात नहीं कर रहा हूं। मैं उन बाबाओं के बारे में बात कर रहा हूं जो प्रतिदिन किसी व्यक्ति को बेवकूफ बनाते हैं। जो हर बात पर भगवान का नाम लेते हैं और साथ ही दोगुना पाप भी करते हैं। मेरा उद्देश्य आपकी आस्था को ठेस पहुंचाना नहीं है। आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे।
मैं आज वैसे बाबा का जिक्र करूंगा जो भारत के लगभग 638,365 गांवों में अपना वर्चस्व कायम रखे हुए हैं। पहले औघड़ बाबा की बात की जाए। दीन दुनिया की समस्याओं से दूर नग्न रहना इस बाबा की विशेषता है। पीर बाबा लोगों की पीड़ा दूर करते हैं। इलाहाबाद के पास वाराणसी रोड पर लीला बाबा है का नाम बरबस याद आ जाता है। कहते हैं बाबा ने अन्न त्याग कर अपना देह त्याग दिया था। हिमालय पर्वत में कई साल तपस्या करने के बाद एक बाबा उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में आए लोगों ने बाबा का नाम देवरहा रख दिया। इस तरह कई और बाबा हैं जो समाज में सम्मानजनक हैं।
समाज में वैसे भी बाबा हैं जो दवा के नाम पर चूरण बेचते हैं। उस चूरण से किसी की बीमारी जाए या ना जाए पर बाबा का गुजारा जरूर चल जाता है। इस श्रेणी के बाबा तांत्रिक कहलाते हैं और अपने प्रचार के लिए अपने चेले चपाटियों का भरपूर उपयोग करते हैं। जब ऐसे बाबा का जिक्र हो तो हाशमी बाबा का जिक्र होना जायज है। ये बाबा समाज में किसी को नामर्द नहीं रहने की कसम खाई है। यूपी के लगभग 60 फीसदी घरों के दिवारों पर ऐसे बाबा का नाम और काम बड़े और लुभावने अक्षरों में लिखा मिल जाता है।
बंगाली बाबा का नाम अचानक ही याद आ जाता है। बंगाली बाबा कोई मान्यता प्राप्त बाबा नहीं है। पर बंगाली बाबा का नामकरण अपने आप में एक विचित्र घटना है। बंगाली बाबा का नामकरण उनके दोस्तों ने बात – बात पर रख दिया। हुआ यूं की बंगाली बाबा बात – बात पर बाबा शब्द का इस्तेमाल करते थे। बाबा रे, हुड़ी बाबा मजमून तो आपने सुना ही होगा। यह शब्द उनके दोस्तों को बहुत भा गया और हुड़ी और रे को परे रखकर उनका नाम बंगाली बाबा ठोक दिया।
दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास बाबा खड़गसिंह मार्ग है। इस मार्ग का अन्य बाबाओं से कोई लेना – देना नहीं है। मैं और कई ऐसे बाबाओं को जानता हूं जो तथाकथित बकैत होते हैं। फायर बाबा का नाम शायद कुछ लोगों को याद आ जाए। फायर बाबा बहुत जल्द ही किसी बात पर फायर हो जाते हैं, मतलब गुस्सा हो जाते हैं। वैसे तो सूची बहुत लंबी है लेकिन अंत में मेटल बाबा आते हैं जिसे आना तो पहले चाहिए था लेकिन वो हमेशा बाद में ही आते हैं। ये बाबा अपने आप को बाबा कहलवाने में ज्यादा खुशी महसूस करते हैं। इस बाबा को ना तो समाज ने और ना ही उनके दोस्तों ने बाबा बनाया। जैसे स्वंय भू कलाकार, स्वंय भू पत्रकार होते हैं वैसे ही ये स्वंय भू बाबा हैं। कभी किसी से नाराज ना होना, अपने काम से काम रखना और जबरदस्त पीआर मेनटेन करना मेटल बाबा की खाशियत है।

फोटो - गूगल

Wednesday, January 13, 2010

क्या हम सही थे ?





हम एक अखबार के दफ्तर में काम करते हैं। अखबार का दफ्तर आईटीओ पर है। हमें किसी से मिलने मंडी हाऊस जाना हुआ। माली हालत नाजुक थी एक दिन में सिर्फ 30 रूपए ही बस का किराया वहन कर सकते थे। वह किराया मुनिरका से आईटीओ तक का था। हमने आईटीओ से मंडी हाऊस पैदल जाना उचित समझा। हम मंडी हाऊस से काम निबटाकर पैदल ही तिलक ब्रिज की ओर चल पड़े वहां से हमें 621 नंबर की बस पकड़नी थी। तिलक ब्रिज बस स्टॉप पर हमारी नजर एक आई कार्ड पर पड़ी। तब तक बस के इंतजार में खड़े एक व्यक्ति ने उस आई कार्ड को उठा लिया। उसने कार्ड देखकर वापस उसी जगह रख दिया। मेरे मन में भी अनजाने वस्तु को देखने का कीड़ा कुलबुलाने लगा। आखिर पहले से ही पत्रकारिता का सुलेमानी कीड़ा काट चुका था। मेरे मित्र ने उस कार्ड को उठाकर गौर से देखने लगा। वह आई कार्ड जगदीश नाम के व्यक्ति का था जो सुप्रीम कोर्ट में एक प्रवेशक के पद पर नियुक्त था। उस व्यक्ति का घर आरके पुरम सेक्टर 7 में था। हमें 621 नंबर की बस से मुनिरका जाना था जो सेक्टर 7 होकर ही मुनिरका जाती थी। मेरे मित्र ने संवेदना दिखाई और उस व्यक्ति के खोये आई कार्ड को उसके पास पहुंचाने का बीड़ा उठाया। उस समय रात के साढ़े नौ बज रहे थे और हल्की बारिश हो रही थी। मौसम सुहाना और ठंड से कान जम गए थे। बस आई उसमें यात्री कम थे, बहरहाल हमलोग उसमें सवार हो गए। करीब एक घंटे बाद हमलोग सीधे मुनिरका पहुंचे। बस वाले की मेहरबानी थी कि सेक्टर 4 से आगे ना जाकर बस को सीधे मुनिरका पहुंचा दिया। बस सेक्टर 5, सेक्टर 6, सेक्टर 7 और सेक्टर 8 होते हुए मुनिरका पहुंचाती थी। लेकिन कम सवारी और मौसम की मेहरबानी की वजह से बस को ज्यादा घुमाना ड्राईवर को नागवार गुजरा। अब हमें अपनी भूमिका अदा करनी थी और रात साढ़े दस बजे एक अनजाने व्यक्ति के घर को तलाशना था। हमारे इस नेक काम में भगवान बारिश के रूप में हमारा साथ दे रहे थे। हम भीगते हुए मुनिरका बस स्टॉप से सेक्टर 7 की ओर चल पड़े। लगभग 5 किलोमीटर पैदल आरके पुरम के गलियों की खाक छानने पर उसका घर मिल गया। हमने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से एक बच्चे की आवाज आई कौन है ? हमने कहा मिस्टर जगदीश हैं, उनसे मिलना है। फिर आवाज आई क्या काम है ? तो हमने कहा हम आपको और आप हमें नहीं जानते लेकिन आपको आपका एक सामान लौटाना है। कुछ पल बाद मिस्टर जगदीश आए और पूछा क्या बात है। इसपर मेरे मित्र ने कहा कि तिलक ब्रिज पर आपका ये आई कार्ड हमें मिला तो इसे आपके पास पहुंचाने चले आए। मिस्टर जगदीश ने कार्ड लिया, इंसानियत के नाते दो शब्द कहा थैंक यू और दरवाजा तुरंत बंद कर लिया। हम एक पल गंवाए तुरंत लौट गए।

मन में एक संतुष्टि थी कि आज एक नेक काम किया। हमने इस काम के बदले कोई आपेक्षा नहीं रखी थी। आखिर हमें मिला क्या दो शब्द थैंक यू वह भी रूडली। जैसे वो हम पर एक साथ कई एहसान कर दिया हो। वाजिब बात है कि कोई भी रात साढ़े दस बजे हमें अपने घर के अंदर बैठाकर चाय नहीं पिलाएगा। इसकी एक वजह हो सकती है जमाना खराब है। कोई इस बहाने उसे लूट ना ले। वो अपने जगह सही था और हम अपने जगह सही थे। आज समाज में इंसानियत नहीं बची या उसे बचा कर नहीं रखी गई।

यहां एक बहस का मुद्दा आपके लिए छोड़ रहा हूं। हमलोगों को उसका आई कार्ड उसके पास पहुंचाना था, या बस स्टॉप पर ही कार्ड को छोड़ कर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री कर लेना था। जैसा कि स्टॉप पर खड़े उस पहले व्यक्ति ने कार्ड को वहां छोड़ कर किया। अगर हम कार्ड को वहां छोड़ देते और सोचते कि जिसका कार्ड है उसे फिक्र नहीं तो हमें क्यों और नियमित दिनचर्या के मुताबिक हमलोग सीधे अपने रूम चले आते। दुनिया कि फिक्र छोड़ एक गहरी नींद सो जाते।
फोटो - गूगल

Friday, January 8, 2010

समाचार

नीचे दो समाचार है, इसे देश के प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थान के एक छात्र ने लिखा है।

केन्द्रीय विद्यालय प्राथमिक का यह है हाल
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नई दिल्ली 7 जनवरी 2010भारतीय शिक्षा प्रणाली जिस तरह कि है।वह बहुत अच्छी है।पर जिस तरह हमारा संविधान में लचिलापन है। उसी तरह स्कूलों में अध्यापकों का लचिलापन देखने को मिला है। जवाहरलाल नेहरू विशवविद्यालय के परिसर में प्राथमिक विद्यालय से पता चला कि वहां के प्रधानाचार्य कहतें हैं कि हमारे विद्यालय में पढ़ाई अच्छी चलती है। और जब बच्चों की कक्षा में जाकर देखा तो कुछ और ही नजर आया। कहावत है कि हाथि (हाथी) के दॉंत दिखाने के और खाने के और होतें हैं। उसी तरह हमारे देश के विद्यालयों की स्थिती है। कक्षा में हल्ला होता है। और अध्यापक कहता बच्चे पढ़ रहे हैं। एक दूसरे से बातें करके गाली गलोच कर रहे हैं। इस सारी प्रक्रिया को अध्यापक दोहरा रहे हैं। आपस में स्टाप से वह कक्षा के पास अध्यापक से बात करना जरूरी समझते हैं। विद्यालय के चपरासी अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं। पर गप्पे मारने में वो भी कम नही है। विद्यालय के मुख्य दरवाजे के पास कुर्सी पर बैठकर छात्रों के अभिभावकों से मजाक करना वह एक दूसरे की कटती करना उनकी आदत में आ गया है। अगर ये हाल केंद्रीय विद्यालयों का है तो दिल्ली के नगर निगम विद्यालयों का क्या होगा।

निजी स्कूलो के पास नहीं है मान्यता का कोई सबूत
नई दिल्ली 8 जनवरी 2010
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दिल्ली प्रदेश के अन्दर बहुत निजी स्कूल है। पर किसी के पास दिल्ली सरकार मान्यता प्राप्त तो है। पर अध्यापक योग्यता प्राप्त नहीं है। और जिन विद्यालय के पास मान्यका प्राप्त नहीं है। और अध्यापक भी योग्यता प्राप्त नहीं है। उन विदयालयों का मालिक छात्रों के अभिभावकों को कैसे संतुष्ट करता है। वह छात्रो की संख्या विदयालय में कैसे बढ़ा लेता है।भारत देश की राजधानी दिल्ली में ऐसा हाल है। तो बिहार व यूपी जैसे प्रदेशो में तो स्वाभाविक होगा।दिल्ली के जनकपुरी में नूतन पब्लिक स्कूल, दिग्दर्शन पब्लिक स्कूल आदि के पास मान्यता प्राप्त नही है। और नेहरू पब्लिक स्कूल व लारेन्स पब्लिक स्कूल मान्यता है। पर अध्यापक 12 वी पास कक्षा 8 को पढ़ाते नजर आयेगे।

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