Wednesday, December 29, 2010

जाने कई साल पहले...


जाने कई साल पहले कुछ सपने बुने थे
जिंदगी के ताना - बाना में उलझ गया
जब फुर्सत मिली एक पल
अतीत याद करने के लिए
तो वह सपना...सपना ही रह गया.

2 comments:

  1. badi nirashapurna kavita hai Kaushal bhai.

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  2. ये बेहतर है ......
    सपने वही देखो जिन्हें पाने की जिद हो..
    मुंगेरीलाल के सपनों में हकीकत नहीं...


    नवीन कुमार विश्वकर्मा

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