Wednesday, January 13, 2010

क्या हम सही थे ?





हम एक अखबार के दफ्तर में काम करते हैं। अखबार का दफ्तर आईटीओ पर है। हमें किसी से मिलने मंडी हाऊस जाना हुआ। माली हालत नाजुक थी एक दिन में सिर्फ 30 रूपए ही बस का किराया वहन कर सकते थे। वह किराया मुनिरका से आईटीओ तक का था। हमने आईटीओ से मंडी हाऊस पैदल जाना उचित समझा। हम मंडी हाऊस से काम निबटाकर पैदल ही तिलक ब्रिज की ओर चल पड़े वहां से हमें 621 नंबर की बस पकड़नी थी। तिलक ब्रिज बस स्टॉप पर हमारी नजर एक आई कार्ड पर पड़ी। तब तक बस के इंतजार में खड़े एक व्यक्ति ने उस आई कार्ड को उठा लिया। उसने कार्ड देखकर वापस उसी जगह रख दिया। मेरे मन में भी अनजाने वस्तु को देखने का कीड़ा कुलबुलाने लगा। आखिर पहले से ही पत्रकारिता का सुलेमानी कीड़ा काट चुका था। मेरे मित्र ने उस कार्ड को उठाकर गौर से देखने लगा। वह आई कार्ड जगदीश नाम के व्यक्ति का था जो सुप्रीम कोर्ट में एक प्रवेशक के पद पर नियुक्त था। उस व्यक्ति का घर आरके पुरम सेक्टर 7 में था। हमें 621 नंबर की बस से मुनिरका जाना था जो सेक्टर 7 होकर ही मुनिरका जाती थी। मेरे मित्र ने संवेदना दिखाई और उस व्यक्ति के खोये आई कार्ड को उसके पास पहुंचाने का बीड़ा उठाया। उस समय रात के साढ़े नौ बज रहे थे और हल्की बारिश हो रही थी। मौसम सुहाना और ठंड से कान जम गए थे। बस आई उसमें यात्री कम थे, बहरहाल हमलोग उसमें सवार हो गए। करीब एक घंटे बाद हमलोग सीधे मुनिरका पहुंचे। बस वाले की मेहरबानी थी कि सेक्टर 4 से आगे ना जाकर बस को सीधे मुनिरका पहुंचा दिया। बस सेक्टर 5, सेक्टर 6, सेक्टर 7 और सेक्टर 8 होते हुए मुनिरका पहुंचाती थी। लेकिन कम सवारी और मौसम की मेहरबानी की वजह से बस को ज्यादा घुमाना ड्राईवर को नागवार गुजरा। अब हमें अपनी भूमिका अदा करनी थी और रात साढ़े दस बजे एक अनजाने व्यक्ति के घर को तलाशना था। हमारे इस नेक काम में भगवान बारिश के रूप में हमारा साथ दे रहे थे। हम भीगते हुए मुनिरका बस स्टॉप से सेक्टर 7 की ओर चल पड़े। लगभग 5 किलोमीटर पैदल आरके पुरम के गलियों की खाक छानने पर उसका घर मिल गया। हमने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से एक बच्चे की आवाज आई कौन है ? हमने कहा मिस्टर जगदीश हैं, उनसे मिलना है। फिर आवाज आई क्या काम है ? तो हमने कहा हम आपको और आप हमें नहीं जानते लेकिन आपको आपका एक सामान लौटाना है। कुछ पल बाद मिस्टर जगदीश आए और पूछा क्या बात है। इसपर मेरे मित्र ने कहा कि तिलक ब्रिज पर आपका ये आई कार्ड हमें मिला तो इसे आपके पास पहुंचाने चले आए। मिस्टर जगदीश ने कार्ड लिया, इंसानियत के नाते दो शब्द कहा थैंक यू और दरवाजा तुरंत बंद कर लिया। हम एक पल गंवाए तुरंत लौट गए।

मन में एक संतुष्टि थी कि आज एक नेक काम किया। हमने इस काम के बदले कोई आपेक्षा नहीं रखी थी। आखिर हमें मिला क्या दो शब्द थैंक यू वह भी रूडली। जैसे वो हम पर एक साथ कई एहसान कर दिया हो। वाजिब बात है कि कोई भी रात साढ़े दस बजे हमें अपने घर के अंदर बैठाकर चाय नहीं पिलाएगा। इसकी एक वजह हो सकती है जमाना खराब है। कोई इस बहाने उसे लूट ना ले। वो अपने जगह सही था और हम अपने जगह सही थे। आज समाज में इंसानियत नहीं बची या उसे बचा कर नहीं रखी गई।

यहां एक बहस का मुद्दा आपके लिए छोड़ रहा हूं। हमलोगों को उसका आई कार्ड उसके पास पहुंचाना था, या बस स्टॉप पर ही कार्ड को छोड़ कर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री कर लेना था। जैसा कि स्टॉप पर खड़े उस पहले व्यक्ति ने कार्ड को वहां छोड़ कर किया। अगर हम कार्ड को वहां छोड़ देते और सोचते कि जिसका कार्ड है उसे फिक्र नहीं तो हमें क्यों और नियमित दिनचर्या के मुताबिक हमलोग सीधे अपने रूम चले आते। दुनिया कि फिक्र छोड़ एक गहरी नींद सो जाते।
फोटो - गूगल

6 comments:

  1. बहुत ही मार्मिक संस्मरण है। इस पर हम कभी विस्तार से बात करेंगे। ऐसे अनुभवों से रगड़ खाते हुए हम वैसा बन जाते हैं, जैसा दरअसल हमें नहीं होना चाहिए। काश कि हम दुनिया के काबिल न बन पाते। सुंदर भाषा में अच्छा लेखन। बधाई और शुभकामनाएं।

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  2. इसमें कोई शक नहीं कि तुम लोगों ने जिम्मेदार नागरिक होने का उदाहरण पेश किया है. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हमें हमारी ज़िम्मेदारी के लिए शाबाशी नहीं मिलती, तो इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि तुम सोचो कि आगे से ऐसा नहीं करोगे. हर किसी के साथ अलग अनुभव होते हैं. हमें ये करना है कि हम अपनी जिम्मेदारियां सही तरीके से निभाए. बड़े स्तर पर नहीं पर अपने अपने स्तर पर तो ऐसा कर ही सकते हैं. अब वो अगले बन्दे कि मर्ज़ी है हमें हमारी अच्छाई का क्या सिला दे. लेकिन यकीन मानो तुम लोगों के जाने के बाद उसने तुम्हे दिल से दुआ ही दी होगी. तो ज़िन्दगी का फलसफा यही रखो नेकी कर दरिया में डाल..... इससे कम से कम तुम्हे तो कुछ अच्छा करने का सुकून मिलेगा.

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  3. kaushal ji aapne bilkul theek nahi kiya. dekhiye wo aadmi ne kaise udaseenta se sirf thank you kaha. shayad use apne icard ki zyada fikra nahi thi wo icard to dubara ban jata. ha agar pan card credit card ya atm card dete to zaroor chai bhi pilata aur namkeen bhi khilta. total waste of time. are kahi aur time invest karna tha

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  4. praveen
    bahut achchha kiya , ek patrakar aur jimmedar naagrik hone ke nate humara yeh farz banta hai ki hum kisi bhi insan ki kisi bhi waqt help karne ke liye hamesha taiyar rahe.... tumne bilkul wesa hi kiya mere dost, i m proud of uuuuuuuuu

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  5. agar us admi k liye us icard ki value hoti to wo jarur tumhari khatirdari karta. but wo sarkar ka damad hai. icard khone par muft mei ya fir 5 rupya fine dekar naya banwa lete, in case agar tum ye meharbani nahi karte to. but aaj k jamane mei tumhari ye kamyab koshish tarif karne layak hai. but I want to ask one question 2 u ......
    what u think ..in this incident.. u won or loss?

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  6. waise to aajkal insani fitrat hi aisi hai ki wo har kisi ko sak ki nigah se hi dekhta hai. lekin delhi jaise mahanagro main aisi ghatnao ki sambhawna or bhi badh jati hai.khair manaiye ki unhone aap par meherbani ki or i card lekar aapko wapas kar diya , kahi aapko hi chor samajhkar andar karwa deta to or bhi halaat bure ho jati. khair mujhe is baat se santusti hai ki aisa karke aapki antaratma ko shanti zaroor mili hogi. to soch lijoiye ye kaam aapne apne liye kiya tha na ki us aadmi ke liye. kapil

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